Tuesday, September 14, 2010


ये हैं दिव्या बसंल। फ्लाइट लेफ्टिनेंट दिव्या बंसल। हमारे आपके लिए हो सकता है कि ये नाम नया हो.... लेकिन आज सुबह के अखबार में जब इस तस्वीर को मैंने देखा तो न जाने कैसे दिमाग के किसी कोने में जाकर ये तस्वीर स्टिल हो गयी है। बार बार ध्यान आ रहा है इस महिला अफसर का। इसकी आंखों को मैं पढ़ना चाह रही हूं...इसकी सलामी, इसके गर्व मुझे भीतर से झकझोर रहे हैं। सामने ताबूत है, और ताबूत पर फूलों से श्रद्धांजलि दी गयी है। ये श्रद्धांजलि दिव्या बसंल अपने शहीद पति को दे रही है जिनकी मौत हेलिकॉप्टर दुर्घटना में हो गयी है। फ्लाइट लेफ्टिनेंट दिव्या बंसल के पति स्क्वाइडन लीडर गौरव वर्मा की झारखंड में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई है। आम भारतीय महिलाओं के ऊपर जब ऐसा दुख टूटता है तब वो अक्सर अपन सुध बुध खो देती है, पति के ताबूत पर सिर पटकतीं, अपनी उजड़ी हुई जिंदगी का मातम मनाती। लेकिन दिव्या ने तब सेना की वर्दी पहन रखी है। और ये वर्दी का उसूल है कि इसे पहन कर कोई नहीं रो सकता है। यानि वर्दी पहनकर भावनाओं में कभी नहीं बहा जा सकता है। और इसी कर्तव्य के पालन के लिए दिव्या ने अपने हर आंसू को शायद पी लिये हैं। ये अपने आप में किसी अग्निपरीक्षा से कम की कठिन घड़ी नहीं है।
ये तस्वीर तो सेना से वरीष्ठ अफसर भी देख रहे होंगे, नीति निर्धाकर भी इससे अनजानें नहीं होगे। ये तस्वीर सिर्फ एक दिव्या की नहीं है.... ये तस्वीर है भारतीय सेना में पूरी ईमानदारी और लगन से काम करने वाली महिला अफसरों की, जो अपने कर्तव्य के सामने नीजि भावनाओं को कभी भी हावी नहीं होने देती हैं। बावजूद इसके सेना में महिलाओं को अपनी बहादुरी, क्षमता की बार बार परीक्षा देनी पड़ती है। फ्रंट पर जाने की बात छोड़ ही दें, यहां महिलाओं को परमानेंट कमीशन देने के लिए भी हाई कोर्ट को दखल देना पड़ा और इसे लेकर वरीष्ठ अफसरों की भौंये तनी हुई है। उन्हें लगता है कि महिलाएं उंगली पकड़कर पौंचा न पकड़ लें।
लेकिन दिव्या बसंल की ये तस्वीर कई सवालों के जवाब हैं। गर्व है दिव्या हमें तुम पर, तुम्हारे हौसले पर, तुम्हारी सहनशीलता पर। गर्व है।