Tuesday, February 9, 2010

काश ! हर मुंबईया कहता "माई नेम इज़ ऑल्सो खान "....

दिन भर चैनलों पर खबरें चलती रहीं कि शिव सैनिकों का तांडव... मुंबई के सिनेमाघरों में तोड़फोड़। शिवसैनिकों ने चेतावनी दी है कि मुंबई के किसी भी मल्टीप्लेक्स में शाहरुख खान की माई नेम इज़ खान नहीं चलने देंगे। फुटेज भी चल रहे थे.....शिवसैनिकों का जोर भी सामने नज़र आ रहा था। सिल्क साड़ियों में लिपटी शिव सैनिकों का फिमेल वर्जन भी दिखा। नारे देते हुए हाथ उठे थे... शाहरुख खान के विरोध में आवाज़ भी बैक ग्राउंड में थे। लगे हाथों महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की शिव सैनिकों को चेतावनी भी आई। सीएम साहब ने कहा कि ये सब बंद करो नहीं तो उद्धव ठाकरे को मिलने वाली सरकारी सुरक्षा हटा ली जाएगी। मीडिया भी एलर्ट हो गया। लाइव फुटेज... लाइव चैट...लाइव इंटरव्यू... सब कुछ लाइव। खबरों पर खबर... दे दनादन। और बनता भी है। इधर कोई खबर ब्रेक कर रहा है तो कोई खबर बना रहा है। सभी व्यस्त। मुंबई की सुरक्षा में तैनात पुलिस वालों की छुट्टियां रद्द। सवाल नाक का जो बन चुका है............ मुंबई में माई नेम इज़ खान चलेगी या नहीं। और इस बीच में खबरों का मदारी डुग डुगी लेकर तमाशा पर तमाशा दिखाए जा रहा है। होड़ लग गई कि किसके चैनल पर तमाशा ज्यादा है। किसके तमाशे से कमाई ज्यादा है। जितना कुछ बेचा जा सके बेचते चलो।

इन खबरों से मीडिया वालों की भले खूब कमाई हुई हो, भले चव्हाण साहब खुद को हीरो समझ बैठें हों और शिवसैनिक जमीन से और भी ऊंचा उड़ रहें हों........लेकिन इन खबरों से आम आदमी के पेट में भू डोल नहीं आने वाला। अलबत्ता दिमाग में जरूर भू डोल आ गया है। इतनी कवायद, इतनी मुस्तैदी, इतना विरोध, इतना सब कुछ किस लिए...... माई नेम इज़ खान को बचाने के लिए। ताकि वो मुंबई के मल्टीप्लेक्सेज़ में चल सके। फिल्म देखने आये लोगों को सुरक्षा दी सकी जाए। एक फिल्म को विरोध से बचाने के लिए इतना ताम झाम, इतनी जद्दोजहद। मानो 26/ 11 ने एक बार फिर मुंबई में दस्तक दी है।

लेकिन सवाल ये है कि सरकार की चिंता माई नेम इज़ खान को बचाने की है। उनका क्या जो माई नेम कुमार, माई नेम इज़ तिवारी, माई नेम इज़ झा, माई नेम इज़ गुप्ता, माई नेम इज़ सिंह, माई नेम इज़ पांडे वैगेरह वैगेरह हैं। इन नाम वालों को भी आये दिन शिव सैनिकों एमएनएस वालों से ज़लील होना पड़ता है, उनके साथ मार पीट होती है, मुंबई छोड़ देने की धमकी दी जाती है। क्यों....क्योंकि ये भारतीय हैं, न की मराठी। क्या कभी सरकार को इन नामों को इतनी सुरक्षा देनी याद आई है। क्या कभी मीडिया इन नामों के सामने दीवार बन कर खड़ा हुआ है। शिवसैनिक, एमएनएस का हमला तो मराठी मानुष या फिर गैर मराठियों के नाम पर इन पर भी होता रहा है। फर्क बस ये है कि इन नामों में किसी बॉलीवुड के बादशाह का नाम नहीं है। ये नाम शहर में ऑटो चलाकर अपना गुज़ारा करने वालों का है, मजदूरी कर पेट पालने वालों का है, टैक्सी चलाने वालों का है, किसी होटल में सफाई करने वालों का है, बस में कंडक्टरी करने वालों का है, डिग्रियों का गठ्ठर बांधे मुंबई में अपने सपनों को तलाशने वालों का है। तो क्या हुआ अगर शिव सैनिक, एमएनएस वाले इन्हें मारें पीटें, जबरन उत्तर भारत की ओर जाने वाली ट्रेनों में बैठा आये। तो क्या हुआ अगर इनकी टैक्सी में आग लगा दी जाए। संगठन के 380 कार्यकर्ताओं की तो एक साथ गिरफ्तारी कभी नहीं हुई होगी। न ही इससे पहले कभी किसी माई नेम इज़ फलाना फलाना के लिेए ही सरकार इतनी मुस्तैद रही होगी.... कि पूरे के पूरे पुलिस अमले की ही छुट्टी कैंसिल।

अब दिमागी भू डोल न आये तो क्या हो। माई नेम इज़ खान के लिए तो चाचा जी को उनके कार्यकर्ता कहतें होंगे कि वॉट ऐन आइडिया सर जी..... फिल्म पर हंगामें ने सरकार के भी दिमाग की बत्ती जला दी...मीडिया के लिए तो हमेशा ठंडा मतलब कोका कोला रहा है। लेकिन इन सबके बीच ऐसे कई नेम हैं जो आज भी घर से बाहर कदम रखते हुए डरते होंगे, कब सर से छत हट जाए ये सोच कर सहमते होंगे, कहने के लिए तो सभी भारतीय हैं लेकिन इस बात पर अफसोस जरूर करते होंगे कि काश हम भी यही कहते कि माई नेम इज़ खान.....................

Monday, February 1, 2010

एक शुरूआत....

पिछले कई महीनों से दूसरों का ब्लॉग देख रही हूं, पढ़ रही हूं। बॉलीवुड सेलिब्रेटीज़ के ब्लॉग को छान रही हूं...उनपर अखबार में कुछ लिख भी रही हूं। ये सब एक रूटीन वर्क हो चुका है। अच्छा लगता है लोगों को उनके ही शब्दों में पढ़ना, जहां न कोई एडिटर है, न कोई स्क्रिप्ट राइटर। लेकिन जब मेरे दिल ने कहा कि मैं भी कुछ लिखूं......तो दिमाग ने मौन में उत्तर दिया.... क्या? वाकयी बड़ा सवाल है कि मेरा ब्लॉग क्या कुछ कहेगा। कुछ पल कि खामोशी के बाद मुझे जवाब मिला.... मेरा ब्लॉग जिंदगी को बयां करेगा....वो जिंदगी जो हमारे आस पास है....जो हंसती है, खेलती है, कुछ कहती है,शोर करती है और कई बार खामोश ही रह है। ये जो है जिंदगी...वाकयी थोड़ी खट्टी है, थोड़ी मीठी है।