Thursday, April 1, 2010

शिक्षा का मौलिक अधिकार ली नहीं खरीदी जा रही है...
1 अप्रैल २०१०..... कई खबर छाये रहे। " आज देश एक नई सुबह की अंगड़ाइयों के साथ जागा।" वैसे जागते तो हम हर सुबह हैं, लेकिन कहा गया कि आज की सुबह खास है। क्यों भला..... सो इसलिए कि आज से देश के १३ महानगरों में यूरो ४ ईंधन पर ही गाड़ियां भागेगी। आज से ही अब तक कि सबसे बड़ी जनगणना मुहिम का श्री गणेश हो गया। नये थलसेना अध्यक्ष वी के सिंह ने सेना की कमान अपने हाथों संभाल लिया और इन सबसे बड़ी बात तो ये कि आज से शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो गया। सरकार बच्चों की पढाई के लिए बेहद चिंतित है। वो चाहती है कि ६ से १३ साल के सभी बच्चे स्कूल जरूर जाएं। स्कूल जाएं.... पढाई करें... पढ़ लिख कर देश के होनहार नौजवान बनें.....देश की तरक्की करें।
अखबार के पन्नों को पलटने से ठीक पहले मैं अपनी ४ साल की बिटिया को स्कूल बस पर बैठा कर आई थी। सुबह के ६ : ५० पर ही बस हमारे स्टैंड पर हॉर्न दे देती है। बस पर जब उसे बैठाया तो हर दिन की तरह मैंने उसे अपना ध्यान खुद रखने की नसीहत दी। तब तक नहीं पता था कि बच्चों के स्कूल जाने की चिंता तो आज से हमारी सरकार कर ही रही है। घर पहुंची तो अखबार में खबर पढ़कर काफी अच्छा लगा। शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार बन गया है। जैसे बोलना हमारा मौलिक अधिकार है। आजादी हमारा मौलिक अधिकार है। अपने हक की लड़ाई लड़ना हमारा मौलिक अधिकार है। समाज में बराबरी का दर्जा हासिल करना मौलिक अधिकार है। कई अधिकारों में एक अधिकार और जुड़ गया। लेकिन अफसोस की बात है कि कई अधिकारों की तरह ही एक और अधिकार बाजारू ताकत के आगे बौना और कमजोर नजर आ रहा।
ज्यादा पुरानी बात नहीं। मेरी ही तरह कई मां बाप अपने बच्चे को उनका मौलिक अधिकार दिलाने की जंग पिछले साल के अंत में लड़ चुके होंगे। नर्सरी का दाखिला। पढ़ने- सीखने के एक अंतहीन सफर की शुरूआत। अभिभावक की रेस लगी है। एक स्कूल से दूसरे स्कूल.... फॉर्म... प्रोस्पेक्टस.....इंटरव्यू... टेस्ट। ये सभी पगबाधा पार करने के बाद सबसे बड़ी बाधा आती है.... स्कूल की फीस की। एक आम आदमी॥मैंगो मैन अपने बच्चे को ये मौलिक अधिकार दिलाने की सबसे बड़ी लड़ाई यहां लड़ता । कॉन्वेंट स्कूल, पब्लिक स्कूल, मिशनरी स्कूल, इंटरनेशनल स्कूल। कौन किसी से कम रहे और रहे भी तो क्यों रहे। सभी जानते हैं कि जिन्हें अपने बच्चे को उनका अधिकार दिलाना है वो अपनी जेब का माल उनकी जेब में डालेंगे ही। शिक्षा का अधिकार तो हर जगह बिक रहा है.... जिसके पास जितना पैसा है वो इस अधिकार के साथ साथ कई एड-ऑन सहुलियतें भी खरीदेगा। यही आज के बाज़ार का दर्शन है।
इसी के साथ मुझे याद आने लगा अपना जमाना। तब बहुत कम ही ऐसे लोग होते थे जो नर्सरी में अपने बच्चों को भेजते थे। सवाल था कि छोटे बच्चें क्या पढेंगे। और पैसे देकर बच्चे को स्कूल खेलने के लिए क्यों भेजे। पैसा... जी हां पैसा। मेरी खुद की नर्सरी की पढ़ाई 20रुपये प्रति महीने में हुई थी। लेकिन ये २० रुपये भी देना हर मां बाप के बस की बात नहीं थी। कॉलोनी में बचपन गुजरा। नर्सरी के बाद सरकारी स्कूल जाने की बारी गई। आजतक हमें पता तक नहीं चल पाया कि आखिर हमारी पढ़ाई में फीस लगते भी थे या नहीं। एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर का बच्चा हो या फिर उन्हीं के पीयून का। हम सभी एक ही स्कूल जाते थे। एक ही क्लास में बैठते थे। सभी के यूनिफॉर्म एक थे। लेकिन उसी में किसी के शर्ट की धुलाई और उसकी सफेदी उसके पिता की हैसियत बताती थी। एक और बात... जितने बच्चे कॉलोनी में हैं उन सभी का दालिखा पक्का था। न कोई टेस्ट न कोई फीस न कोई इंटरव्यू। जो भी उस कॉलोनी से होगा उसका नामांकन तो निश्चित था। हमने भी पढ़ाई की... हमारे भाई ने भी पढ़ाई की... और हमारे उस कॉलोनी के तमाम बच्चों ने अपना मौलिक अधिकार पा लिया। ६०, ७० और ८० के दशक तक शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने की बात भी नहीं छिड़ी थी। लेकिन तब न तो स्कूल इतने मंहगे थे और न ही किताबें। हां मुश्किल थी तो बस बच्चों से उसके स्कूल की दूरी और जागरुकता की कमी। 7० के ही दशक में संजय गांधी के सख्त कदमों ने देश की धरती पर कई कारखाने खड़े किये। आज जिस मारुति ८०० को कई शहरों में बंद किया जा रहा है, वो भी ८० के ही दशक में देश में आई। सड़कों की सूरत बदल गई। व्यवसायिक शिक्षा से लेकर पारंपरिक शिक्षा सब हासिल की जाती ।बच्चा तेज है तो इंजीनियरिंग या फिर मेडिकल निकालेगा.... नहीं तो सिविल्स। ये नहीं निकाल सका तो बैंक पीओ.... नहीं को क्लर्क ही सही। जितनी भी पढ़ाई लिखाई हुई... उसी के दम पर कम से कम दूसरे मौलिक अधिकार तो हासिल हो ही जाते थे।
लेकिन आज सरकार जिस तरह से शिक्षा के मौलिक अधिकार के कानून का ढोल पीट रही है... क्या उससे वाकयी बच्चों की पढ़ाई सुलभ हो सकेगी। क्या पब्लिक स्कूलों के फीस पर मौलिक अधिकार अपनी हक हासिल कर सकेगा । या नर्सरी के दाखिले से शुरू हुई मारामारी जो प्रोफेशनल कोर्स तक में पैसे का तमाशा दिखाती है... क्या सरकार उसमें शिक्षा का हक दिला सकेगी। या फिर देश भर में ऐसे बेहतर स्तर के स्कूल खोल सकेगी जिसमें बच्चों को अपना अधिकार हासिल करने के लिए बस में घंटों समय बर्बाद न करना पड़े। ....... या फिर हर दिन की तरह कल भी मुझे अपनी बेटी को उसके स्कूल बस पर बैठाते समय यही कहना पड़ेगा कि " अपना ध्यान रखना।"

1 comment:

  1. Bahut Khub...lekin is adhikar ke notice ke peeche *condition apply laga hua hai jo ki hubble ke durbin se dekhne par pata chalega.Ye condition ye hai ki adhikar lena hoga aur uske liye apko rakam chukani hogi jo aapne last year form,prospectus,interview aur uske baad moti fees ke roop me chukaya hai.Is rakam par sirf 100 rs per child per annum Income Tax rebate hai.
    Next year CAG ki report aayegi ki phalan phalan crore INR shiksha ke adhikar ke uppar kharch ho gaye usme se phala phala crore gaban(scam) hua uski committe baidhegi jo aish karegi jab jat sarkar hai.Tab tak aur naye international,convent,missionary etc school khul jayenge aur, aur moti rakam is adhikar ke liye dena hoga.

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